
संधि किसे कहते हैं? Sandhi Kise Kahate Hain संधि का उदाहरण, शाब्दिक अर्थ एवं परिचय, भेद, उपभेद एवं स्वर संधि का अन्य उदाहरण|
संधि किसे कहते हैं ? Sandhi Kise Kahate Hain
संधि का अर्थ होता है “मेल” या “जोड़”। जब दो शब्दों के बीच आने वाले वर्ण आपस में मिलकर नए रूप में बदल जाते हैं या उनका उच्चारण बदल जाता है, तो इसे संधि कहते हैं। यह भाषा को सरल, प्रवाहमय और सुंदर बनाने की प्रक्रिया है।
संधि की परिभाषा (आसान शब्दों में) – Sandhi kee paribhaasha
दो अक्षरों या ध्वनियों के मेल से जब उनके उच्चारण में बदलाव होता है, तो उसे संधि कहते हैं।
“दो या दो से अधिक वर्णों के मेल से जो विकार (परिवर्तन) उत्पन्न होता है, उसे संधि कहते है।”
जैसे :-
- गंग + जल = गंगाजल
- नील + कमल = नीलकमल
- राज + ऋषि = राजर्षि
- विद्या + आलय = विद्यालय
- देव + आलय = देवालय
- मणि + दीप = मणिदीप
- सुर + ईश = सुरेश
- चन्द्र + उदय = चन्द्रोदय
नोट (Note): जब दो वर्ण अत्यंत निकट होते हैं, तो उनके आपस में मेल से कुछ परिवर्तन होता है, जिसे संधि कहते हैं। इसे निम्नलिखित उदाहरण से समझ सकते हैं :
संधि के उदाहरण (Sandhi ke udaharan)
उदाहरण: राज + ऋषि = राजर्षि
- अ + ऋ
- यहाँ “अ” और “ऋ” मिलते हैं। इनका मेल होने से स्वर में विकार होता है।
- अ + ऋ = अर् (संधि नियम के अनुसार)।
- राज + ऋषि
- “राज” का अंतिम स्वर “अ” और “ऋषि” का पहला स्वर “ऋ” मिलते हैं।
- “अ” और “ऋ” के मेल से “अर्” बनता है।
- राज + ऋषि
- अब “राज” और “ऋषि” को संधि नियम के अनुसार जोड़ने पर “राजर्षि” शब्द बनता है।
दूसरा उदाहरण: देव + आलय = देवालय
- अ + आ
- “अ” और “आ” का मेल होने से स्वर में विकार होता है।
- अ + आ = आ (संधि नियम के अनुसार)।
- देव + आलय
- “देव” का अंतिम स्वर “अ” और “आलय” का पहला स्वर “आ” संयोग करते हैं।
- “अ” और “आ” के मेल से “आ” बनता है।
- देव + आलय
- “देव” और “आलय” को जोड़ने पर “देवालय” शब्द बनता है।
संधि का शाब्दिक परिचय
संधि का शाब्दिक अर्थ:
- संधि का शाब्दिक अर्थ “मेल” या “समझौता” होता है।
संधि कौन-सी शब्द है?
- “संधि” एक तत्सम शब्द है।
संधि का लिंग:
- संधि का लिंग स्त्रीलिंग है।
संधि का विलोम:
- संधि का विलोम या विपरीत शब्द अलग या विच्छेद होता है।
संधि का वर्ण-विच्छेद:
- संधि का वर्ण-विच्छेद = सम् + धा + कि
संधि के पर्यायवाची शब्द:
- संधि के पर्यायवाची शब्द हैं: जोड़ना , मिलाना , समझौता कराना , संयोग, मिलान, जोड़, संयुक्त करना, समन्वय इत्यादि।
संधि-विच्छेद किसे कहते है ? (Sandhi vichchhed)
संधि-विच्छेद का अर्थ है, शब्दों के अंतर्गत आने वाले वर्णों को अलग-अलग करना और पदों को स्पष्ट रूप से विभाजित करना।
उदाहरण: विद्या + आलय = विद्यालय
- यहाँ “विद्यालय” शब्द का संधि-विच्छेद “विद्या + आलय” हुआ है।
- इस प्रक्रिया में “विद्या” से “आ” और “आलय” से “आ” अलग किए गए हैं।
- अंत में यह दो अलग-अलग पदों को जोड़ने पर “विद्यालय” शब्द बना है।
संधि-विच्छेद के उदाहरण (Sandhi vichchhed ke udaharan )
गुरूदय | गुरु + उदय |
रामालंकार | राम + अलंकार |
मनवेन्द्र | मनु + इन्द्र |
तज्जन | तद् + जन |
जगदीश्वर | जगत् + ईश्वर |
देवालय | देव + आलय |
हर्यलय | हरि + अलय |
वाकोषधि | वाक् + औषधि |
शच्च | शत + च |
अङ्गमाला | अङ्ग + माला |
इस प्रकार, संधि-विच्छेद में शब्दों को उनके मूल रूप में विभाजित किया जाता है।
संधि के कितने भेद हैं? (Sandhi ke kitane bhed hain)
संधि को हम तीन भागो में विभाजित कर सकते हैं :-
(1) स्वर संधि |
(2) व्यंजन संधि |
(3) विसर्ग संधि ।
(1) स्वर संधि किसे कहते हैं (Swar Sandhi Kise Kahate Hain )?

जब दो स्वर वर्ण आपस में मिलते हैं और उनके मेल से उच्चारण में परिवर्तन होता है, तो उसे स्वर संधि कहते हैं। यह संधि भाषा को सरल बनाती है।
स्वर संधि के उदाहरण (Swar Sandhi ke udaharan )
- राम + आलय = रामालय
- विद्या + नगर = विद्यानगर
- मनु + इन्द्र = मनवेन्द्र
- वध + उपाय = वधोपाय
- भू + ईश = भौमीश
- कु + अशल = कौशल
- हरि + अलय = हर्यलय
- दूह + वासा = दुर्वासा
- देव + आलय = देवालय
- गौरा + ईश्वर = गौरीश्वर
इस प्रकार, स्वर संधि में दो स्वर मिलकर एक नई ध्वनि या स्वर का निर्माण करते हैं।
स्वर संधि को कैसे पहचाने :-
उदाहरण: “राज + ईश = राजेश”
- संधि-विच्छेद (राज + ईश):
- यहाँ “राज” और “ईश” के मिलन से “राजेश” शब्द बना है।
- संधि-विच्छेद में “राज” और “ईश” को दो भागों में बांटा गया है।
- खंडित भाग का पहला उच्चारण:
- “राज” का अंतिम उच्चारण “अ” है।
- खंडित भाग का दूसरा उच्चारण:
- “ईश” का पहला उच्चारण “ई” है।
- स्वर संधि:
- चूंकि “अ” और “ई” दो स्वर वर्ण हैं, और इन दोनों के मेल से “आ” ध्वनि उत्पन्न होती है, तो यह स्वर संधि होगी।
- अंतिम शब्द:
- “राज” और “ईश” के मेल से “राजेश” शब्द बना।
निष्कर्ष:
- जब दो स्वर वर्ण एक-दूसरे के निकट आते हैं और उनके उच्चारण से कोई ध्वनि परिवर्तन होता है, तो उसे स्वर संधि कहा जाता है। जैसे कि “राज + ईश = राजेश” में “अ” और “ई” मिलकर “आ” बना, जिससे स्वर संधि हुई।
स्वर संधि के कितने भेद है ? (Swar Sandhi Ke Bhed)
स्वर संधि के पांच भेद हैं :-
(i) दीर्घ स्वर संधि |
(ii) गुण स्वर संधि |
(iii) वृद्धि स्वर संधि |
(iv) यण् स्वर संधि |
(v) अयादि स्वर संधि ।
(i) दीर्घ स्वर संधि किसे कहते है ? (Dirgh Swar Sandhi)
जब दो समान स्वर (अ + अ, इ + इ, उ + उ) आपस में मिलते हैं और उनके संयोग से एक दीर्घ स्वर (आ, ई, ऊ) बनता है, तो उसे दीर्घ संधि कहते हैं।
यहाँ कुछ दीर्घ स्वर संधि के उदाहरण दिए गए हैं:
नोट:-(i) ह्रस्व स्वर+ ह्रस्व स्वर = दीर्घ स्वर ।
(ii) दीर्घ स्वर + दीर्घ स्वर = दीर्घ स्वर ।
(iii) ह्रस्व स्वर + दीर्घ स्वर = दीर्घ स्वर ।
- राम + आलय = रामालय
- विद्या + नगर = विद्यानगर
- तपस् + वन = तपोवन
- भू + धरा = भूधरा
- पुण्य + आनंद = पुण्यानंद
दीर्घ संधि के विशेष नियम:
- अ + अ = आ:
- नियम: यदि किसी शब्द के अंत में ‘अ’ हो और अगले शब्द की शुरुआत ‘अ’ से हो, तो दोनों मिलकर ‘आ’ बन जाते हैं।
- उदाहरण: राम + अशोक = रामाशोक
- इ + इ = ई:
- नियम: यदि किसी शब्द के अंत में ‘इ’ हो और अगले शब्द की शुरुआत ‘इ’ से हो, तो दोनों मिलकर ‘ई’ बन जाते हैं।
- उदाहरण: विद्या + इश्वरी = विद्येश्वरी
- उ + उ = ऊ:
- नियम: यदि किसी शब्द के अंत में ‘उ’ हो और अगले शब्द की शुरुआत ‘उ’ से हो, तो दोनों मिलकर ‘ऊ’ बन जाते हैं।
- उदाहरण: गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
दीर्घ संधि का महत्व:
- भाषा की संक्षिप्तता और प्रवाह: यह संधि भाषा को संक्षिप्त और प्रवाहपूर्ण बनाती है।
- उच्चारण में स्पष्टता: यह उच्चारण को स्पष्ट और सरल बनाती है।
- साहित्यिक उपयोग: साहित्यिक लेखन में इसका व्यापक उपयोग होता है।
(ii) गुण स्वर संधि (Gun Swar Sandhi or Gun Sandhi) :-
जब अ, आ, इ, ई, उ या ऊ के बाद कोई स्वर आए और उनके संयोग से क्रमशः ए, ओ जैसे नए स्वर उत्पन्न हों, तो उसे गुण संधि कहते हैं। यह संधि हिंदी और संस्कृत व्याकरण में उच्चारण को सरल और प्रवाहमय बनाने के लिए प्रयोग की जाती है।
गुण संधि के नियम :-
- अ + इ या ई = ए
- अ + उ या ऊ = ओ
- आ + इ या ई = ए
- आ + उ या ऊ = ओ
गुण संधि के उदाहरण (Gun Sandhi ke udaharan)
- मनु + इन्द्र = मनवेन्द्र
- देव + ईश = देवेश
- वध + उपाय = वधोपाय
- लोक + ईश = लोकेश
- तपस् + वन = तपोवन
गुण संधि के विशेष नियम (Gun Sandhi Ke Niyam):
- स्वरों का परिवर्तन:
- नियम: यदि ‘अ’ के बाद ‘इ’ या ‘ई’ आता है, तो वे मिलकर ‘ए’ बनाते हैं।
- उदाहरण: नर + ईश्वर = नरेश्वर
- उ और अ का परिवर्तन:
- नियम: यदि ‘अ’ के बाद ‘उ’ या ‘ऊ’ आता है, तो वे मिलकर ‘ओ’ बनाते हैं।
- उदाहरण: वध + उपाय = वधोपाय
- आ के साथ संयोग:
- नियम: ‘आ’ के बाद ‘इ’, ‘ई’, ‘उ’, या ‘ऊ’ आने पर क्रमशः ‘ए’ और ‘ओ’ बनते हैं।
- उदाहरण: धर्म + उपदेश = धर्मोपदेश
गुण संधि का महत्व:
- भाषा की संक्षिप्तता और प्रवाह: गुण संधि भाषा के शब्दों को संक्षिप्त और प्रवाहपूर्ण बनाती है।
- साहित्यिक और वैदिक उपयोग: साहित्यिक लेखन और वैदिक मंत्रों में गुण संधि का व्यापक उपयोग होता है।
- उच्चारण में स्पष्टता और लय: यह उच्चारण में स्पष्टता और लय बनाए रखती है।
(iii) वृद्धि स्वर संधि (Vridhi Swar Sandhi Or Vridhi Sandhi):
जब अ, आ, इ, ई, उ या ऊ के बाद क्रमशः ए, ऐ, ओ या औ का संयोग होता है और उनके मेल से क्रमशः आय, औ जैसी ध्वनियों का निर्माण होता है, तो उसे वृद्धि संधि कहते हैं। यह संधि उच्चारण में स्पष्टता लाने के लिए उपयोग की जाती है।
वृद्धि संधि का नियम (Vridhi Sandhi Ke Niyam)
- अ या आ + ए या ऐ = आय
- अ या आ + ओ या औ = औ
- इ, ई, उ, ऊ के साथ स्वर आने पर भी वृद्धि संधि होती है।
वृद्धि संधि के उदाहरण (Vriddhi Sandhi ke udaharan)
- भू + ईश = भौमीश
- कु + अशल = कौशल
- गार + ईश = गार्ईश
- देव + औषधि = देवौषधि
- लाव + उद = लावौद
वृद्धि संधि के विशेष नियम और उसके महत्व को ध्यान में रखते हुए, निम्नलिखित संधियों का संकलन किया गया है:
- स्वरों के मेल का परिवर्तन:
- नर + ऐश्वर्य = नारैश्वर्य
(यहां ‘नर’ और ‘ऐश्वर्य’ के बीच स्वरों का मेल परिवर्तन होता है, जिसके कारण ‘नर’ और ‘ऐ’ मिलकर ‘नारै’ बनता है।)
- नर + ऐश्वर्य = नारैश्वर्य
- स्वरों का औ में परिवर्तन:
- लोक + औषधि = लौकोषधि
(यहां ‘लोक’ और ‘औषधि’ के बीच स्वरों का औ में परिवर्तन होता है, जिससे ‘लोक’ और ‘औ’ मिलकर ‘लौको’ बनता है।)
- लोक + औषधि = लौकोषधि
वृद्धि संधि का महत्व:
- भाषा के साहित्यिक और वैचारिक लेखन में प्रभावी बनाती है: वृद्धि संधि के प्रयोग से शब्दों में मधुरता और गहराई आती है, जिससे लेखन में प्रभावपूर्णता बढ़ती है।
- उच्चारण में प्रवाह और स्पष्टता लाती है: वृद्धि संधि से शब्दों का उच्चारण अधिक सुलभ और प्रवाहपूर्ण होता है, जो बोलने में सहजता लाता है।
- संस्कृत व हिंदी व्याकरण में विशेष उपयोग: यह संधि संस्कृत और हिंदी दोनों ही भाषाओं के व्याकरण का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो शब्दों के निर्माण और अर्थ में स्पष्टता और सामंजस्य स्थापित करती है।
संक्षेप में, वृद्धि संधि शब्दों के बीच सुंदरता और अर्थ की गहराई को जोड़ती है, जिससे भाषा में सुंदरता और स्पष्टता आती है।
(iv) यण् स्वर संधि (Yan Swar Sandhi ):-
जब इ, ई, उ, ऊ के बाद कोई स्वर आने पर क्रमशः उनका य, व में परिवर्तन हो जाता है, तो इसे यण संधि कहते हैं।
यण संधि का नियम
- इ या ई + स्वर = य में परिवर्तन
- उ या ऊ + स्वर = व में परिवर्तन
यण संधि के उदाहरण
- हर्यलय = हरि + आलय → हर्यलय
- कुर्वाक = कुरु + आक → कुर्वाक
- देवयानी = देवा + आयनी → देवयानी
- दुर्वासा = दुह + वासा → दुर्वासा
- शिवालय = शिव + आलय → शिवालय
यण संधि के विशेष नियम:
- इ, ई का य में परिवर्तन:
- यदि इ या ई के बाद कोई स्वर आता है तो वे मिलकर य में बदल जाते हैं।
- उदाहरण: हरि + आलय = हर्यलय
- उ, ऊ का व में परिवर्तन:
- यदि उ या ऊ के बाद कोई स्वर आता है तो वे मिलकर व में परिवर्तित हो जाते हैं।
- उदाहरण: दुह + वासा = दुर्वासा
यण संधि का महत्व:
- यह संधि उच्चारण को प्रवाहमय और सरल बनाती है।
- वैदिक मंत्रों और साहित्यिक ग्रंथों में इसका विशेष प्रयोग होता है।
- हिंदी और संस्कृत के काव्य व शास्त्रों में यह संधि अत्यंत उपयोगी मानी जाती है।
(v) अयादि स्वर संधि (Ayadi Swar Sandhi):-
अयादि स्वर संधि का एक महत्वपूर्ण भाग है जो मूल रूप से व्याकरण में “अ” या “आ” स्वर के बाद आने वाले “इ” और “ई” के साथ होने वाले स्वर परिवर्तन को बताती है। इसके परिणामस्वरूप, मूल धातु या शब्दों के स्वर में परिवर्तन होता है।
अयादि स्वर संधि के नियम
- स्वरों का मेल:
यदि एक शब्द का अंतिम अक्षर “अ” या “आ” हो और अगले शब्द का प्रारंभ “इ” या “ई” स्वर से हो, तो इनका योग स्वर परिवर्तन करता है।- उदाहरण:
- हरि + आलय = हर्यालय
- शिव + आलय = शिवालय
- उदाहरण:
- स्वर परिवर्तन का क्रम:
स्वर जुड़ने पर “अ” या “आ” के साथ “इ” और “ई” का स्वरांतर, यथानुसार य या ईकार के रूप में होता है।
अयादि स्वर संधि के उदाहरण
- हर्यालय:
- हरि + आलय = हर्यालय
(यहाँ ‘रि’ और ‘आ’ के संयोग से ‘र्या’ हो गया।)
- हरि + आलय = हर्यालय
- शिवालय:
- शिव + आलय = शिवालय
(यहाँ ‘व’ और ‘आ’ के मेल से ‘वा’ बना।)
- शिव + आलय = शिवालय
- देवयानी:
- देवा + आयनी = देवयानी
(यहाँ ‘वा’ और ‘आ’ के संयोग से ‘या’ हुआ।)
- देवा + आयनी = देवयानी
- दुर्वासा:
- दुह + वासा = दुर्वासा
(यहाँ ‘ह’ और ‘आ’ के मेल से ‘वा’ बना।)
- दुह + वासा = दुर्वासा
अयादि स्वर संधि की विशेषताएँ
- स्पष्टता:
यह संधि शब्दों के उच्चारण और लेखन को अधिक सुगम बनाती है। - उद्गम:
यह अधिकतर संस्कृत धातुओं और उनके संयोजनों में देखी जाती है। - लौकिक उपयोग:
अयादि संधि आज भी हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में शब्द-निर्माण और साहित्य में उपयोग होती है।
(2) व्यंजन संधि किसे कहते है ? (Vyanjan Sandhi kise Kahate Hain)

व्यंजन संधि दो व्यंजनों के मेल से उत्पन्न ध्वनि परिवर्तन को दर्शाती है। यह संधि संस्कृत और हिंदी व्याकरण में शब्दों के मेल और उनके उच्चारण में सुगमता के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
जैसे :-
- सत् + जन = सज्जन
- सत् + आनन्द = सदानन्द
- अहम् + कार = अहंकार
- सम् + मान = सम्मान आदि ।
व्यंजन संधि के प्रकार और उदाहरण (Vyanjan Sandhi ke prakaar)
व्यंजन संधि के मुख्य प्रकार और उदाहरण नीचे दिए गए हैं:
1. व्यंजन + व्यंजन संधि
- जब एक व्यंजन के बाद दूसरा व्यंजन आता है, तो पहले व्यंजन का उच्चारण बदल जाता है।
- उदाहरण:
- सत् + जन = सज्जन
(यहाँ ‘त्’ और ‘ज’ के बीच संधि होने से ‘त्’ का उच्चारण ‘ज्’ में बदल गया है।) - विद् + जन = विज्जन
(यहाँ ‘द्’ और ‘ज’ के बीच संधि होने से ‘द्’ का उच्चारण ‘ज्’ में बदल गया है।) - दिक् + गज = दिग्गज
(यहाँ ‘क्’ और ‘ग’ के बीच संधि होने से ‘क्’ का उच्चारण ‘ग्’ में बदल गया है।)
- सत् + जन = सज्जन
2. व्यंजन + स्वर संधि
- जब एक व्यंजन के बाद कोई स्वर आता है, तो व्यंजन का उच्चारण बदल जाता है।
- उदाहरण:
- राम + अवतार = रामावतार
(यहाँ ‘म’ और ‘अ’ के बीच संधि होने से ‘म’ का उच्चारण ‘मा’ में बदल गया है।) - विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
(यहाँ ‘आ’ और ‘अ’ के बीच संधि होने से ‘आ’ का उच्चारण ‘आ’ में ही रहता है।) - सु + अर्थ = स्वार्थ
(यहाँ ‘उ’ और ‘अ’ के बीच संधि होने से ‘उ’ का उच्चारण ‘व्’ में बदल गया है।)
- राम + अवतार = रामावतार
3. व्यंजन + विसर्ग संधि
- जब एक व्यंजन के बाद विसर्ग (ः) आता है, तो व्यंजन का उच्चारण बदल जाता है।
- उदाहरण:
- निः + चय = निश्चय
(यहाँ ‘ः’ और ‘च’ के बीच संधि होने से ‘ः’ का उच्चारण ‘श्’ में बदल गया है।) - निः + दय = निर्दय
(यहाँ ‘ः’ और ‘द’ के बीच संधि होने से ‘ः’ का उच्चारण ‘र्’ में बदल गया है।) - निः + सन्देह = निस्सन्देह
(यहाँ ‘ः’ और ‘स’ के बीच संधि होने से ‘ः’ का उच्चारण ‘स्’ में बदल गया है।)
- निः + चय = निश्चय
4. व्यंजन + अनुस्वार संधि
कवि + अंक = कवींक
(यहाँ ‘इ’ और ‘अं’ के बीच संधि होने से ‘इ’ का उच्चारण ‘ईं’ में बदल गया है।)
जब एक व्यंजन के बाद अनुस्वार (ं) आता है, तो व्यंजन का उच्चारण बदल जाता है।
व्यंजन संधि के उदाहरण (Vyanjan Sandhi ke udaaharan)
सत् + चित् + आनन्द = सच्चिदानन्द
(यहाँ ‘त्’ और ‘च्’ के बीच संधि होने से ‘त्’ का उच्चारण ‘च्’ में बदल गया है।)
दिक् + दर्शन = दिग्दर्शन
(यहाँ ‘क्’ और ‘द’ के बीच संधि होने से ‘क्’ का उच्चारण ‘ग्’ में बदल गया है।)
विद्या + आलय = विद्यालय
(यहाँ ‘आ’ और ‘आ’ के बीच संधि होने से ‘आ’ का उच्चारण ‘आ’ में ही रहता है।)
सु + आगत = स्वागत
(यहाँ ‘उ’ और ‘आ’ के बीच संधि होने से ‘उ’ का उच्चारण ‘व्’ में बदल गया है।)
निः + रोग = निरोग
उदाहरण
- दत्तात्रेय = दत् + त्रेय
- सद्धर्म = सद् + धर्म
- लक्ष्मण = लक्ष् + मण
- सद्गति = सद् + गति
- तच्छील = तत् + शील
व्यंजन संधि के उदाहरण व्याख्या के साथ (Vyanjan Sandhi ke udaaharan vyaakhya ke saath)
1. सत् + गुण → सद्गुण
- “सत्” के अंतिम व्यंजन “त्” का मेल “गुण” के प्रथम व्यंजन “ग” से होता है। परसवर्ण नियम के अनुसार यह “सद्गुण” बनता है।
2. सद् + धर्म → सद्धर्म
- “सद्” का अंतिम व्यंजन “द्” और “धर्म” का प्रारंभिक व्यंजन “ध” मिलकर “सद्धर्म” बनाते हैं। समान वर्गीय व्यंजनों का मेल हुआ।
3. तत् + शील → तच्छील
- “तत्” के “त्” और “शील” के “श” के मेल से “तच्छील” बना। यहाँ व्यंजन का लोप हुआ और “च” का उपयोग हुआ।
4. लक्ष् + मण → लक्ष्मण
- “लक्ष्” के “क्ष्” और “मण” के “म” के मेल से “लक्ष्मण” बना। यहाँ “क्ष” ध्वनि को बनाए रखा गया।
5. भगवत् + गीता → भगवद्गीता
- “भगवत्” के “त्” और “गीता” के “ग” के मेल से “द्ग” ध्वनि बनी। यह परसवर्ण संधि का परिणाम है।
6. विद् + द्वान → विद्वान
- “विद्” का “द्” और “द्वान” का “द्व” मिलकर “विद्वान” बने। यहाँ उच्चारण के लिए परिवर्तन हुआ।
7. यत् + नियम → यत्नियम
- “यत्” और “नियम” के मेल से “यत्नियम” बना। “त्” का “न” के साथ परिवर्तन हुआ।
8. उद् + भव → उद्भव
- “उद्” और “भव” के मेल से “उद्भव” बना। “द्” और “भ” के मेल से ध्वनि का सानुकूलन हुआ।
9. अप् + जल → अप्जल
- “अप्” और “जल” के मिलने से “प्” और “ज” के मेल से “अप्जल” बना।
10. शिव + आलय → शिवालय
- “शिव” और “आलय” के मेल से “शिवालय” बना। यहाँ स्वर और व्यंजन दोनों का संयोजन हुआ।
11. अत् + मन → आत्मन
- “अत्” और “मन” के मेल से “त्” और “म” का संयोग “आत्मन” बना देता है।
12. पितृ + ऋण → पितृण
- “पितृ” और “ऋण” के मिलने पर “पितृण” बना। व्यंजन के साथ स्वर का मेल हुआ।
13. राज् + ऋषि → राजर्षि
- “राज्” और “ऋषि” के मेल से “राजर्षि” बना। यहाँ “ज्” का रूपांतरण “ज” में हुआ।
14. लोक् + हित → लोकोहित
- “लोक्” और “हित” का मेल “लोकोहित” बनाता है। व्यंजन और स्वर दोनों का संयोग है।
15. उत्त् + कर्म → उत्त्कर्म
- “उत्त्” और “कर्म” का मेल “उत्त्कर्म” बनाता है। “त्” और “क” का संयोग हुआ।
16. तद् + विद्या → तद्विद्या
- “तद्” और “विद्या” के मेल से “द्” और “व” के संयोग से “तद्विद्या” बनी।
17. आत्मा + ज्ञ → आत्मज्ञ
- “आत्मा” और “ज्ञ” के मिलने से “आत्मज्ञ” बना। यह उच्चारण को सरल बनाता है।
18. सत् + युग → सत्युग
- “सत्” और “युग” के संयोग से “त्” का “य” के साथ परिवर्तन “सत्युग” बनाता है।
19. अप् + गण → अप्गण
- “अप्” और “गण” का मेल “अप्गण” बनाता है। “प” और “ग” के संयोग से नया ध्वनि रूप बना।
20. देव + ऋषि → देवर्षि
- “देव” और “ऋषि” के मेल से “देवर्षि” बना। यहाँ स्वर और व्यंजन का संयोजन हुआ।
व्यंजन संधि के नियम (Vyanjan Sandhi ke niyam)
नियम- (1)
संधि-विच्छेद के नियम के अनुसार, यदि पहले पद का अंतिम वर्ण “क्, च्, ट्, त्, प्” (स्पर्श व्यंजन) हो और दूसरे पद का पहला वर्ण कोई स्वर (जैसे अ, आ, इ, ई, उ, आदि) हो, तो पहले पद के अंतिम वर्ण में परिवर्तन होता है। इस परिवर्तन के अनुसार:
- “क्” का “ग्” हो जाता है।
- “च्” का “ज्” हो जाता है।
- “ट्” का “ड्” हो जाता है।
- “त्” का “द्” हो जाता है।
- “प्” का “ब्” हो जाता है।
यह नियम संधि के समय व्यंजनों में होने वाले परिवर्तन को दर्शाता है।
जैसे :-
- क् + इ = ग्
उदाहरण:
दिक् + इन्द्र = दिगिन्द्र
(यहाँ “क्” का “ग्” हो गया है।) - च् + उ = ज्
उदाहरण:
वच् + उदित = वजुदित
(यहाँ “च्” का “ज्” हो गया है।) - ट् + ए = ड्
उदाहरण:
षट् + एश = षडेश
(यहाँ “ट्” का “ड्” हो गया है।) - त् + ओ = द्
उदाहरण:
सत् + ओज = सदोज
(यहाँ “त्” का “द्” हो गया है।) - प् + ई = ब्
उदाहरण:
अप् + ईक्षा = अबीक्षा
(यहाँ “प्” का “ब्” हो गया है।) - क् + आ = ग्
उदाहरण:
सक् + आर = सगार
(यहाँ “क्” का “ग्” हो गया है।) - च् + ई = ज्
उदाहरण:
अच् + ईति = अजीति
(यहाँ “च्” का “ज्” हो गया है।) - ट् + उ = ड्
उदाहरण:
षट् + उर = षडुर
(यहाँ “ट्” का “ड्” हो गया है।) - त् + आ = द्
उदाहरण:
उत् + आय = उदाय
(यहाँ “त्” का “द्” हो गया है।) - प् + इ = ब्
उदाहरण:
अप् + इच्छा = अबिच्छा
(यहाँ “प्” का “ब्” हो गया है।) इत्यादि ।
नियम -(2)
संधि-विच्छेद के नियम के अनुसार, यदि पहले पद का अंतिम वर्ण “क्, च्, ट्, त्, प्” (स्पर्श व्यंजन) हो और दूसरे पद का पहला वर्ण उसी वर्ग का तीसरा या चौथा वर्ण (जैसे ग, ज, ड, द, ब या घ, झ, ढ, ध, भ) हो, तो पहले पद के अंतिम वर्ण में परिवर्तन होता है। इस परिवर्तन के अनुसार:
- “क्” का “ग्” हो जाता है।
- “च्” का “ज्” हो जाता है।
- “ट्” का “ड्” हो जाता है।
- “त्” का “द्” हो जाता है।
- “प्” का “ब्” हो जाता है।
यह नियम तब लागू होता है जब दूसरे पद का पहला वर्ण उसी वर्ग का तीसरा या चौथा वर्ण हो। उदाहरण के लिए:
- क् + ग = ग्
उदाहरण: दिक् + गज = दिग्गज
(यहाँ “क्” का “ग्” हो गया है।) - च् + ज = ज्
उदाहरण: वच् + जाल = वज्जाल
(यहाँ “च्” का “ज्” हो गया है।) - ट् + ड = ड्
उदाहरण: षट् + डमर = षड्डमर
(यहाँ “ट्” का “ड्” हो गया है।) - त् + द = द्
उदाहरण: उत् + दान = उद्दान
(यहाँ “त्” का “द्” हो गया है।) - प् + ब = ब्
उदाहरण: अप् + बाधा = अब्बाधा
(यहाँ “प्” का “ब्” हो गया है।)
इस प्रकार, यह नियम संधि के समय व्यंजनों में होने वाले परिवर्तन को दर्शाता है।
नियम- (3)
संधि-विच्छेद के नियम के अनुसार, यदि पहले पद का अंतिम वर्ण “क्, च्, ट्, त्, प्” (स्पर्श व्यंजन) हो और दूसरे पद का पहला वर्ण अंतःस्थ व्यंजन (य, र, ल, व) में से कोई हो, तो पहले पद के अंतिम वर्ण में परिवर्तन होता है। इस परिवर्तन के अनुसार:
- “क्” का “ग्” हो जाता है।
- “च्” का “ज्” हो जाता है।
- “ट्” का “ड्” हो जाता है।
- “त्” का “द्” हो जाता है।
- “प्” का “ब्” हो जाता है।
यह नियम तब लागू होता है जब दूसरे पद का पहला वर्ण अंतःस्थ व्यंजन (य, र, ल, व) हो। उदाहरण के लिए:
- क् + य = ग्
उदाहरण: दिक् + यान = दिग्यान
(यहाँ “क्” का “ग्” हो गया है।) - च् + र = ज्
उदाहरण: वच् + रक्षा = वज्रक्षा
(यहाँ “च्” का “ज्” हो गया है।) - ट् + ल = ड्
उदाहरण: षट् + लक्ष = षड्लक्ष
(यहाँ “ट्” का “ड्” हो गया है।) - त् + व = द्
उदाहरण: उत् + वाह = उद्वाह
(यहाँ “त्” का “द्” हो गया है।) - प् + य = ब्
उदाहरण: अप् + योग = अब्योग
(यहाँ “प्” का “ब्” हो गया है।)
नियम- (4)
- जब पहले शब्द का अंतिम वर्ण क, च, ट, त, प में से कोई हो और दूसरे शब्द का पहला वर्ण न या म हो, तो पहले शब्द के अंतिम वर्ण को उसी वर्ग का पाँचवाँ वर्ण बना दिया जाता है।
- उदाहरण:
- क् का पाँचवाँ वर्ण = ङ्
- च् का पाँचवाँ वर्ण = ञ्
- ट् का पाँचवाँ वर्ण = ण्
- त् का पाँचवाँ वर्ण = न्
- प् का पाँचवाँ वर्ण = म्
उदाहरण:
- तत् + नयन = तन्नयन
- यहाँ पहले शब्द का अंतिम वर्ण त् है और दूसरे शब्द का पहला वर्ण न है।
- त् (त वर्ग) का पाँचवाँ वर्ण न् होता है।
- इसलिए, त् + न = न् हो जाता है।
- अंतिम शब्द: तन्नयन।
- वाक् + मय = वाङ्मय
- यहाँ पहले शब्द का अंतिम वर्ण क् है और दूसरे शब्द का पहला वर्ण म है।
- क् (क वर्ग) का पाँचवाँ वर्ण ङ् होता है।
- इसलिए, क् + म = ङ् हो जाता है।
- अंतिम शब्द: वाङ्मय।
- अच् + नति = अञ्ञति
- यहाँ पहले शब्द का अंतिम वर्ण च् है और दूसरे शब्द का पहला वर्ण न है।
- च् (च वर्ग) का पाँचवाँ वर्ण ञ् होता है।
- इसलिए, च् + न = ञ् हो जाता है।
- अंतिम शब्द: अञ्ञति।
- उत् + मुख = उन्मुख
- यहाँ पहले शब्द का अंतिम वर्ण त् है और दूसरे शब्द का पहला वर्ण म है।
- त् (त वर्ग) का पाँचवाँ वर्ण न् होता है।
- इसलिए, त् + म = न् हो जाता है।
- अंतिम शब्द: उन्मुख।
- शुक् + मय = शुङ्मय
- यहाँ पहले शब्द का अंतिम वर्ण क् है और दूसरे शब्द का पहला वर्ण म है।
- क् (क वर्ग) का पाँचवाँ वर्ण ङ् होता है।
- इसलिए, क् + म = ङ् हो जाता है।
- अंतिम शब्द: शुङ्मय।
नियम – (5)
संधि-विच्छेद (Sandhi Vichchhed) के नियम के अनुसार, जब किसी शब्द के पहले पद का अंतिम उच्चारण “त्” या “द्” हो और उसके बाद कोई व्यंजन वर्ण (जैसे क, च, ट, ज, ड, द, न, प, त, आदि) आए, तो “त्” या “द्” लुप्त हो जाता है और उसके स्थान पर “हल्” या “हलन्त्” (एक अदृश्य व्यंजन) जुड़ जाता है। इस नियम को समझाने के लिए नीचे उदाहरण दिए गए हैं:
- उदाहरण 1:
- मूल शब्द: सत् + चित्
- संधि-विच्छेद: सच्चित्
- व्याख्या: यहाँ “त्” और “च्” के बीच संधि होने पर “त्” लुप्त हो गया और “हल्” जुड़ गया।
- उदाहरण 2:
- मूल शब्द: उद् + ज्वल
- संधि-विच्छेद: उज्ज्वल
- व्याख्या: यहाँ “द्” और “ज्” के बीच संधि होने पर “द्” लुप्त हो गया और “हल्” जुड़ गया।
- उदाहरण 3:
- मूल शब्द: तत् + नय
- संधि-विच्छेद: तन्नय
- व्याख्या: यहाँ “त्” और “न्” के बीच संधि होने पर “त्” लुप्त हो गया और “हल्” जुड़ गया।
4. उदाहरण:
- मूल शब्द: तत् + काल
- संधि-विच्छेद: तक्काल
- व्याख्या: यहाँ “त्” और “क्” के बीच संधि होने पर “त्” लुप्त हो गया और “हल्” जुड़ गया।
5. उदाहरण:
- मूल शब्द: उद् + धर
- संधि-विच्छेद: उद्धर
- व्याख्या: यहाँ “द्” और “ध्” के बीच संधि होने पर “द्” लुप्त हो गया और “हल्” जुड़ गया।
6. उदाहरण:
- मूल शब्द: तत् + पुरुष
- संधि-विच्छेद: तप्पुरुष
- व्याख्या: यहाँ “त्” और “प्” के बीच संधि होने पर “त्” लुप्त हो गया और “हल्” जुड़ गया।
7. उदाहरण:
- मूल शब्द: सत् + नाम
- संधि-विच्छेद: सन्नाम
- व्याख्या: यहाँ “त्” और “न्” के बीच संधि होने पर “त्” लुप्त हो गया और “हल्” जुड़ गया।
8. उदाहरण:
- मूल शब्द: उद् + नत
- संधि-विच्छेद: उन्नत
- व्याख्या: यहाँ “द्” और “न्” के बीच संधि होने पर “द्” लुप्त हो गया और “हल्” जुड़ गया।
9. उदाहरण:
- मूल शब्द: तत् + मय
- संधि-विच्छेद: तम्मय
- व्याख्या: यहाँ “त्” और “म्” के बीच संधि होने पर “त्” लुप्त हो गया और “हल्” जुड़ गया।
10. उदाहरण:
- मूल शब्द: सत् + चरित्र
- संधि-विच्छेद: सच्चरित्र
- व्याख्या: यहाँ “त्” और “च्” के बीच संधि होने पर “त्” लुप्त हो गया और “हल्” जुड़ गया।
11. उदाहरण:
- मूल शब्द: तत् + रूप
- संधि-विच्छेद: तरूप
- व्याख्या: यहाँ “त्” और “र्” के बीच संधि होने पर “त्” लुप्त हो गया और “हल्” जुड़ गया।
इस प्रकार, संधि-विच्छेद के नियम के अनुसार, “त्” या “द्” के बाद व्यंजन वर्ण आने पर “त्” या “द्” लुप्त हो जाता है और उसके स्थान पर “हल्” या “हलन्त्” जुड़ जाता है।
नियम -(6)
जब दो शब्द जुड़ते हैं और पहले शब्द का अंतिम अक्षर “त्” या “द्” होता है, और दूसरे शब्द का पहला अक्षर “श्” होता है, तो संधि के कारण “त्” या “द्” का उच्चारण “च्” में बदल जाता है और “श्” का उच्चारण “छ्” में बदल जाता है। इस प्रकार, “त् + श्” या “द् + श्” का संयोजन “च्छ्” बन जाता है।
उदाहरण:
- तत् + शिवम् = तच्छिवम्
- उद् + श्रित = उच्छ्रित
यह नियम संस्कृत व्याकरण में “श्चुत्व संधि” के नाम से जाना जाता है।
- उदाहरण:
- मूल शब्द: तत् + शिवम्
- संधि: तच्छिवम्
- व्याख्या: यहाँ “त्” और “श्” के बीच संधि होने पर “त्” का उच्चारण “च्” और “श्” का उच्चारण “छ्” हो गया।
- उदाहरण:
- मूल शब्द: उद् + श्रित
- संधि: उच्छ्रित
- व्याख्या: यहाँ “द्” और “श्” के बीच संधि होने पर “द्” का उच्चारण “च्” और “श्” का उच्चारण “छ्” हो गया।
- उदाहरण:
- मूल शब्द: तत् + शरणम्
- संधि: तच्छरणम्
- व्याख्या: यहाँ “त्” और “श्” के बीच संधि होने पर “त्” का उच्चारण “च्” और “श्” का उच्चारण “छ्” हो गया।
- उदाहरण:
- मूल शब्द: सत् + शास्त्रम्
- संधि: सच्छास्त्रम्
- व्याख्या: यहाँ “त्” और “श्” के बीच संधि होने पर “त्” का उच्चारण “च्” और “श्” का उच्चारण “छ्” हो गया।
- उदाहरण:
- मूल शब्द: तत् + शीलम्
- संधि: तच्छीलम्
- व्याख्या: यहाँ “त्” और “श्” के बीच संधि होने पर “त्” का उच्चारण “च्” और “श्” का उच्चारण “छ्” हो गया।
- उदाहरण:
- मूल शब्द: उद् + शोभनम्
- संधि: उच्छोभनम्
- व्याख्या: यहाँ “द्” और “श्” के बीच संधि होने पर “द्” का उच्चारण “च्” और “श्” का उच्चारण “छ्” हो गया।
- उदाहरण:
- मूल शब्द: तत् + शुभम्
- संधि: तच्छुभम्
- व्याख्या: यहाँ “त्” और “श्” के बीच संधि होने पर “त्” का उच्चारण “च्” और “श्” का उच्चारण “छ्” हो गया।
- उदाहरण:
- मूल शब्द: सत् + शक्तिः
- संधि: सच्छक्तिः
- व्याख्या: यहाँ “त्” और “श्” के बीच संधि होने पर “त्” का उच्चारण “च्” और “श्” का उच्चारण “छ्” हो गया।
- उदाहरण:
- मूल शब्द: तत् + शान्तिः
- संधि: तच्छान्तिः
- व्याख्या: यहाँ “त्” और “श्” के बीच संधि होने पर “त्” का उच्चारण “च्” और “श्” का उच्चारण “छ्” हो गया।
- उदाहरण:
- मूल शब्द: उद् + श्वासः
- संधि: उच्छ्वासः
- व्याख्या: यहाँ “द्” और “श्” के बीच संधि होने पर “द्” का उच्चारण “च्” और “श्” का उच्चारण “छ्” हो गया।
नियम – (7)
जब दो शब्दों के बीच संधि होती है –
- पहले शब्द का अंतिम अक्षर “त्” या “द्” होता है,
- दूसरे शब्द का पहला अक्षर “ह्” या “घ्” होता है,
तो संधि के कारण:
- “त्” या “द्” का उच्चारण “द्” में बदल जाता है,
- “ह्” का उच्चारण “घ्” में बदल जाता है।
लेकिन, अगर दूसरे शब्द का पहला अक्षर पहले से ही “घ्” है, तो उसमें कोई बदलाव नहीं होता।
- उदाहरण:
- मूल शब्द: तत् + हितम्
- संधि: तद्घितम्
- व्याख्या: यहाँ “त्” और “ह्” के बीच संधि होने पर “त्” का उच्चारण “द्” और “ह्” का उच्चारण “घ्” हो गया।
- उदाहरण:
- मूल शब्द: उद् + हारः
- संधि: उद्घारः
- व्याख्या: यहाँ “द्” और “ह्” के बीच संधि होने पर “द्” का उच्चारण “द्” और “ह्” का उच्चारण “घ्” हो गया।
- उदाहरण:
- मूल शब्द: तत् + हरणम्
- संधि: तद्घरणम्
- व्याख्या: यहाँ “त्” और “ह्” के बीच संधि होने पर “त्” का उच्चारण “द्” और “ह्” का उच्चारण “घ्” हो गया।
- उदाहरण:
- मूल शब्द: सत् + हितः
- संधि: सद्घितः
- व्याख्या: यहाँ “त्” और “ह्” के बीच संधि होने पर “त्” का उच्चारण “द्” और “ह्” का उच्चारण “घ्” हो गया।
- उदाहरण:
- मूल शब्द: तत् + हसनम्
- संधि: तद्घसनम्
- व्याख्या: यहाँ “त्” और “ह्” के बीच संधि होने पर “त्” का उच्चारण “द्” और “ह्” का उच्चारण “घ्” हो गया।
- उदाहरण:
- मूल शब्द: उद् + घोषः
- संधि: उद्घोषः
- व्याख्या: यहाँ “द्” और “घ्” के बीच संधि होने पर “द्” का उच्चारण “द्” और “घ्” का उच्चारण “घ्” ही रहा (कोई बदलाव नहीं हुआ)।
- उदाहरण:
- मूल शब्द: तत् + घटः
- संधि: तद्घटः
- व्याख्या: यहाँ “त्” और “घ्” के बीच संधि होने पर “त्” का उच्चारण “द्” और “घ्” का उच्चारण “घ्” ही रहा (कोई बदलाव नहीं हुआ)।
- उदाहरण:
- मूल शब्द: सत् + हर्षः
- संधि: सद्घर्षः
- व्याख्या: यहाँ “त्” और “ह्” के बीच संधि होने पर “त्” का उच्चारण “द्” और “ह्” का उच्चारण “घ्” हो गया।
- उदाहरण:
- मूल शब्द: तत् + हिमः
- संधि: तद्घिमः
- व्याख्या: यहाँ “त्” और “ह्” के बीच संधि होने पर “त्” का उच्चारण “द्” और “ह्” का उच्चारण “घ्” हो गया।
- उदाहरण:
- मूल शब्द: उद् + घटनम्
- संधि: उद्घटनम्
- व्याख्या: यहाँ “द्” और “घ्” के बीच संधि होने पर “द्” का उच्चारण “द्” और “घ्” का उच्चारण “घ्” ही रहा (कोई बदलाव नहीं हुआ)।
नियम का सारांश:
- “त्” या “द्” + “ह्” = “द्” + “घ्” (जैसे, तत् + हितम् = तद्घितम्)
- “त्” या “द्” + “घ्” = “द्” + “घ्” (जैसे, तत् + घटः = तद्घटः)
नियम -(08)
संधि-विच्छेद के नियम के अनुसार, यदि पहले शब्द का अंतिम उच्चारण ‘त्’ या ‘द्’ हो और दूसरे शब्द का पहला उच्चारण ‘झ’ हो, तो ‘त्’ या ‘द्’ का उच्चारण ‘ज्’ में बदल जाता है। इसे सरल भाषा में समझाएं तो:
**नियम:**
जब एक शब्द ‘त्’ या ‘द्’ से खत्म होता है और अगला शब्द ‘झ’ से शुरू होता है, तो ‘त्’ या ‘द्’ का उच्चारण ‘ज्’ में बदल जाता है।
**उदाहरण:**
1. **उत् + झरित = उज्झरित**
(यहाँ ‘त्’ का उच्चारण ‘ज्’ में बदल गया है।)
2. **दत् + झंकार = दज्झंकार**
(यहाँ ‘त्’ का उच्चारण ‘ज्’ में बदल गया है।)
3. **विद् + झर = विज्झर**
(यहाँ ‘द्’ का उच्चारण ‘ज्’ में बदल गया है।)
4. **सत् + झलक = सज्झलक**
(यहाँ ‘त्’ का उच्चारण ‘ज्’ में बदल गया है।)
5. **मत् + झंझट = मज्झंझट**
(यहाँ ‘त्’ का उच्चारण ‘ज्’ में बदल गया है।)
6. **गत् + झंझावात = गज्झंझावात**
(यहाँ ‘त्’ का उच्चारण ‘ज्’ में बदल गया है।)
7. **हत् + झड़ी = हज्झड़ी**
(यहाँ ‘त्’ का उच्चारण ‘ज्’ में बदल गया है।)
8. **पत् + झरना = पज्झरना**
(यहाँ ‘त्’ का उच्चारण ‘ज्’ में बदल गया है।)
9. **चत् + झंझट = चज्झंझट**
(यहाँ ‘त्’ का उच्चारण ‘ज्’ में बदल गया है।)
10. **वत् + झर = वज्झर**
(यहाँ ‘त्’ का उच्चारण ‘ज्’ में बदल गया है।)
इस प्रकार, यह नियम संधि-विच्छेद में ‘त्’ या ‘द्’ के ‘ज्’ में परिवर्तन को दर्शाता है।
नियम -(09)
संधि-विच्छेद के इस नियम को सरल भाषा में समझाएं तो:
**नियम:**
जब पहले शब्द का अंतिम उच्चारण ह्रस्व स्वर (अ, इ, उ) हो और दूसरे शब्द का पहला उच्चारण “छ” हो, तो “छ” का उच्चारण “च्छ” में बदल जाता है।
**उदाहरण:**
1. **अति + छोटा = अच्छोटा**
(यहाँ “छ” का उच्चारण “च्छ” में बदल गया है।)
2. **प्रति + छाया = प्रच्छाया**
(यहाँ “छ” का उच्चारण “च्छ” में बदल गया है।)
3. **सु + छवि = सुच्छवि**
(यहाँ “छ” का उच्चारण “च्छ” में बदल गया है।)
4. **नि + छल = निच्छल**
(यहाँ “छ” का उच्चारण “च्छ” में बदल गया है।)
5. **अधि + छत्र = अधिच्छत्र**
(यहाँ “छ” का उच्चारण “च्छ” में बदल गया है।)
6. **प्रति + छेद = प्रच्छेद**
(यहाँ “छ” का उच्चारण “च्छ” में बदल गया है।)
7. **सु + छिद्र = सुच्छिद्र**
(यहाँ “छ” का उच्चारण “च्छ” में बदल गया है।)
8. **अति + छुरी = अच्छुरी**
(यहाँ “छ” का उच्चारण “च्छ” में बदल गया है।)
9. **प्रति + छाप = प्रच्छाप**
(यहाँ “छ” का उच्चारण “च्छ” में बदल गया है।)
10. **नि + छान = निच्छान**
(यहाँ “छ” का उच्चारण “च्छ” में बदल गया है।)
इस प्रकार, यह नियम संधि-विच्छेद में “छ” के “च्छ” में परिवर्तन को दर्शाता है।
नियम – (10)
संधि-विच्छेद के इस नियम को सरल भाषा में समझाएं तो:
**नियम:**
जब पहले शब्द का अंतिम उच्चारण ‘ष्’ हो और दूसरे शब्द का पहला उच्चारण ‘त’ या ‘थ’ हो, तो ‘त’ का उच्चारण ‘ट्’ और ‘थ’ का उच्चारण ‘ठ्’ में बदल जाता है।
**उदाहरण:**
1. **दुष् + तर = दुष्टर**
(यहाँ ‘त’ का उच्चारण ‘ट्’ में बदल गया है।)
2. **दुष् + तम = दुष्टम**
(यहाँ ‘त’ का उच्चारण ‘ट्’ में बदल गया है।)
3. **दुष् + थर = दुष्ठर**
(यहाँ ‘थ’ का उच्चारण ‘ठ्’ में बदल गया है।)
4. **दुष् + थम = दुष्ठम**
(यहाँ ‘थ’ का उच्चारण ‘ठ्’ में बदल गया है।)
5. **विष् + तर = विष्टर**
(यहाँ ‘त’ का उच्चारण ‘ट्’ में बदल गया है।)
6. **विष् + तम = विष्टम**
(यहाँ ‘त’ का उच्चारण ‘ट्’ में बदल गया है।)
7. **विष् + थर = विष्ठर**
(यहाँ ‘थ’ का उच्चारण ‘ठ्’ में बदल गया है।)
8. **विष् + थम = विष्ठम**
(यहाँ ‘थ’ का उच्चारण ‘ठ्’ में बदल गया है।)
9. **शुष् + तर = शुष्टर**
(यहाँ ‘त’ का उच्चारण ‘ट्’ में बदल गया है।)
10. **शुष् + थर = शुष्ठर**
(यहाँ ‘थ’ का उच्चारण ‘ठ्’ में बदल गया है।)
इस प्रकार, यह नियम संधि-विच्छेद में ‘त’ और ‘थ’ के ‘ट्’ और ‘ठ्’ में परिवर्तन को दर्शाता है।
नियम – (11)
संधि-विच्छेद के इस नियम को सरल भाषा में समझाएं तो:
**नियम:**
जब पहले शब्द का अंतिम उच्चारण ‘म्’ हो और दूसरे शब्द का पहला उच्चारण अंतःस्थ व्यंजन वर्ण (य, र, ल, व) हो, तो ‘म्’ का उच्चारण अनुस्वार (ं) में बदल जाता है।
**उदाहरण:**
1. **राम् + यात्रा = रांयात्रा**
(यहाँ ‘म्’ का उच्चारण अनुस्वार (ं) में बदल गया है।)
2. **कम् + रव = कंरव**
(यहाँ ‘म्’ का उच्चारण अनुस्वार (ं) में बदल गया है।)
3. **शम् + लभ = शंलभ**
(यहाँ ‘म्’ का उच्चारण अनुस्वार (ं) में बदल गया है।)
4. **गम् + वर = गंवर**
(यहाँ ‘म्’ का उच्चारण अनुस्वार (ं) में बदल गया है।)
5. **धर्म् + यात्रा = धर्म्यात्रा**
(यहाँ ‘म्’ का उच्चारण अनुस्वार (ं) में बदल गया है।)
6. **कर्म् + योग = कर्म्योग**
(यहाँ ‘म्’ का उच्चारण अनुस्वार (ं) में बदल गया है।)
7. **विद्याम् + रक्षा = विद्यांरक्षा**
(यहाँ ‘म्’ का उच्चारण अनुस्वार (ं) में बदल गया है।)
8. **सुखम् + लभ्य = सुखंलभ्य**
(यहाँ ‘म्’ का उच्चारण अनुस्वार (ं) में बदल गया है।)
9. **नम् + वर = नंवर**
(यहाँ ‘म्’ का उच्चारण अनुस्वार (ं) में बदल गया है।)
10. **शुभम् + यात्रा = शुभंयात्रा**
(यहाँ ‘म्’ का उच्चारण अनुस्वार (ं) में बदल गया है।)
इस प्रकार, यह नियम संधि-विच्छेद में ‘म्’ के अनुस्वार (ं) में परिवर्तन को दर्शाता है।
नियम- (12)
संधि-विच्छेद के इस नियम को सरल भाषा में समझाएं तो:
**नियम:**
जब पहले शब्द का अंतिम उच्चारण ‘म्’ हो और दूसरे शब्द का पहला उच्चारण उष्म व्यंजन वर्ण (श, ष, स, ह) हो, तो ‘म्’ का उच्चारण अनुस्वार (ं) में बदल जाता है।
**उदाहरण:**
1. **राम् + शरण = रांशरण**
(यहाँ ‘म्’ का उच्चारण अनुस्वार (ं) में बदल गया है।)
2. **कम् + सर = कंसर**
(यहाँ ‘म्’ का उच्चारण अनुस्वार (ं) में बदल गया है।)
3. **शम् + सर = शंसर**
(यहाँ ‘म्’ का उच्चारण अनुस्वार (ं) में बदल गया है।)
4. **गम् + हार = गंहार**
(यहाँ ‘म्’ का उच्चारण अनुस्वार (ं) में बदल गया है।)
5. **धर्म् + शाला = धर्म्शाला**
(यहाँ ‘म्’ का उच्चारण अनुस्वार (ं) में बदल गया है।)
6. **कर्म् + सागर = कर्म्सागर**
(यहाँ ‘म्’ का उच्चारण अनुस्वार (ं) में बदल गया है।)
7. **विद्याम् + सागर = विद्यांसागर**
(यहाँ ‘म्’ का उच्चारण अनुस्वार (ं) में बदल गया है।)
8. **सुखम् + सर = सुखंसर**
(यहाँ ‘म्’ का उच्चारण अनुस्वार (ं) में बदल गया है।)
9. **नम् + हार = नंहार**
(यहाँ ‘म्’ का उच्चारण अनुस्वार (ं) में बदल गया है।)
10. **शुभम् + शील = शुभंशील**
(यहाँ ‘म्’ का उच्चारण अनुस्वार (ं) में बदल गया है।)
इस प्रकार, यह नियम संधि-विच्छेद में ‘म्’ के अनुस्वार (ं) में परिवर्तन को दर्शाता है।
नियम – (13)
संधि-विच्छेद के इस नियम को सरल भाषा में समझाएं तो:
**नियम:**
जब पहले शब्द का अंतिम उच्चारण ऋ, र्, ष् हो और दूसरे शब्द का पहला उच्चारण ‘न’ हो, या दोनों के बीच कोई स्वर वर्ण, ‘क वर्ग’, ‘प वर्ग’, या य्, र्, व् हो, तो ‘न’ का उच्चारण ‘ण’ में बदल जाता है।
**उदाहरण:**
1. **पितृ + नाम = पितृणाम**
(यहाँ ‘न’ का उच्चारण ‘ण’ में बदल गया है।)
2. **धातृ + नाम = धातृणाम**
(यहाँ ‘न’ का उच्चारण ‘ण’ में बदल गया है।)
3. **विष् + नाश = विष्णाश**
(यहाँ ‘न’ का उच्चारण ‘ण’ में बदल गया है।)
4. **पितृ + नयन = पितृणयन**
(यहाँ ‘न’ का उच्चारण ‘ण’ में बदल गया है।)
5. **धातृ + नयन = धातृणयन**
(यहाँ ‘न’ का उच्चारण ‘ण’ में बदल गया है।)
6. **विष् + नयन = विष्णयन**
(यहाँ ‘न’ का उच्चारण ‘ण’ में बदल गया है।)
7. **पितृ + निवास = पितृणिवास**
(यहाँ ‘न’ का उच्चारण ‘ण’ में बदल गया है।)
8. **धातृ + निवास = धातृणिवास**
(यहाँ ‘न’ का उच्चारण ‘ण’ में बदल गया है।)
9. **विष् + निवास = विष्णिवास**
(यहाँ ‘न’ का उच्चारण ‘ण’ में बदल गया है।)
10. **पितृ + नाथ = पितृणाथ**
(यहाँ ‘न’ का उच्चारण ‘ण’ में बदल गया है।)
इस प्रकार, यह नियम संधि-विच्छेद में ‘न’ के ‘ण’ में परिवर्तन को दर्शाता है।
नियम- (14)
संधि-विच्छेद के इस नियम को सरल भाषा में समझाएं तो:
**नियम:**
जब अकार (अ) या आकार (आ) को छोड़कर किसी अन्य स्वर (इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ) के बाद ‘स’ या ‘स्’ हो, तो ‘स’ या ‘स्’ का उच्चारण ‘ष’ में बदल जाता है।
**उदाहरण:**
1. **नि + सार = निषार**
(यहाँ ‘स’ का उच्चारण ‘ष’ में बदल गया है।)
2. **प्रति + सार = प्रतिषार**
(यहाँ ‘स’ का उच्चारण ‘ष’ में बदल गया है।)
3. **सु + सार = सुषार**
(यहाँ ‘स’ का उच्चारण ‘ष’ में बदल गया है।)
4. **नि + साद = निषाद**
(यहाँ ‘स’ का उच्चारण ‘ष’ में बदल गया है।)
5. **प्रति + साद = प्रतिषाद**
(यहाँ ‘स’ का उच्चारण ‘ष’ में बदल गया है।)
6. **सु + साद = सुषाद**
(यहाँ ‘स’ का उच्चारण ‘ष’ में बदल गया है।)
7. **नि + सार्थ = निषार्थ**
(यहाँ ‘स’ का उच्चारण ‘ष’ में बदल गया है।)
8. **प्रति + सार्थ = प्रतिषार्थ**
(यहाँ ‘स’ का उच्चारण ‘ष’ में बदल गया है।)
9. **सु + सार्थ = सुषार्थ**
(यहाँ ‘स’ का उच्चारण ‘ष’ में बदल गया है।)
10. **नि + साधन = निषाधन**
(यहाँ ‘स’ का उच्चारण ‘ष’ में बदल गया है।)
इस प्रकार, यह नियम संधि-विच्छेद में ‘स’ या ‘स्’ के ‘ष’ में परिवर्तन को दर्शाता है।
(3) विसर्ग संधि किसे कहते हैं ? (Visarg Sandhi kise kahate Hain)

विसर्ग संधि में, जब किसी शब्द के अंत में विसर्ग (ः) हो और उसके बाद कोई स्वर या व्यंजन आता है, तो विसर्ग (ः) का उच्चारण बदल जाता है। यह परिवर्तन इस बात पर निर्भर करता है कि विसर्ग (ः) के बाद कौन सा स्वर या व्यंजन आया है। इस परिवर्तन को ही विसर्ग संधि कहते हैं।
जैसे :-
निः + मल = निर्मल
निः + जल = निर्जल
निः + मान = निर्माण
निः + गुण = निर्गुण
विसर्ग संधि के नियम और उदाहरण (Visarg Sandhi ke niyam aur udaaharan)
विसर्ग संधि के कुछ मुख्य नियम और उदाहरण नीचे दिए गए हैं:
1. विसर्ग (ः) + स्वर (अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ)
- जब विसर्ग (ः) के बाद कोई स्वर आता है, तो विसर्ग (ः) का उच्चारण “र” या “ओ” में बदल जाता है।
- उदाहरण:
- मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
(यहाँ विसर्ग (ः) के बाद स्वर (अ) आया है, इसलिए विसर्ग (ः) का उच्चारण “ओ” में बदल गया है।) - तेजः + अधिक = तेजोअधिक
(यहाँ विसर्ग (ः) के बाद स्वर (अ) आया है, इसलिए विसर्ग (ः) का उच्चारण “ओ” में बदल गया है।) - दुः + आत्मा = दुरात्मा
(यहाँ विसर्ग (ः) के बाद स्वर (आ) आया है, इसलिए विसर्ग (ः) का उच्चारण “र” में बदल गया है।)
- मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
2. विसर्ग (ः) + व्यंजन (क, ख, ग, घ, च, छ, ज, झ, आदि)
- जब विसर्ग (ः) के बाद कोई व्यंजन आता है, तो विसर्ग (ः) का उच्चारण “स्” या “र्” में बदल जाता है।
- उदाहरण:
- मनः + कामना = मनस्कामना
(यहाँ विसर्ग (ः) के बाद व्यंजन (क) आया है, इसलिए विसर्ग (ः) का उच्चारण “स्” में बदल गया है।) - तेजः + धार = तेजोधार
(यहाँ विसर्ग (ः) के बाद व्यंजन (ध) आया है, इसलिए विसर्ग (ः) का उच्चारण “र्” में बदल गया है।) - दुः + कर्म = दुष्कर्म
(यहाँ विसर्ग (ः) के बाद व्यंजन (क) आया है, इसलिए विसर्ग (ः) का उच्चारण “स्” में बदल गया है।)
- मनः + कामना = मनस्कामना
3. विसर्ग (ः) + श, ष, स, ह
- जब विसर्ग (ः) के बाद श, ष, स, या ह आता है, तो विसर्ग (ः) का उच्चारण “श्”, “ष्”, “स्”, या “ह्” में बदल जाता है।
- उदाहरण:
- मनः + शान्ति = मनःशान्ति
(यहाँ विसर्ग (ः) के बाद श आया है, इसलिए विसर्ग (ः) का उच्चारण “श्” में बदल गया है।) - तेजः + हार = तेजोहार
(यहाँ विसर्ग (ः) के बाद ह आया है, इसलिए विसर्ग (ः) का उच्चारण “ह्” में बदल गया है।)
- मनः + शान्ति = मनःशान्ति
विसर्ग संधि के और उदाहरण (Visarg Sandhi ke aur udaaharan)
- निः + चल = निश्चल
(यहाँ विसर्ग (ः) के बाद च आया है, इसलिए विसर्ग (ः) का उच्चारण “श्” में बदल गया है।) - निः + दय = निर्दय
(यहाँ विसर्ग (ः) के बाद द आया है, इसलिए विसर्ग (ः) का उच्चारण “र्” में बदल गया है।) - निः + सन्देह = निस्सन्देह
(यहाँ विसर्ग (ः) के बाद स आया है, इसलिए विसर्ग (ः) का उच्चारण “स्” में बदल गया है।) - निः + फल = निर्फल
(यहाँ विसर्ग (ः) के बाद फ आया है, इसलिए विसर्ग (ः) का उच्चारण “र्” में बदल गया है।) - निः + रोग = निरोग
(यहाँ विसर्ग (ः) के बाद र आया है, इसलिए विसर्ग (ः) का उच्चारण “र्” में बदल गया है।)